प्राचीन दुग्धेश्वरनाथ शिवलिंग कई शताब्दियों के इतिहास का साक्षी है
बस्ती। विकासखंड छरदही ग्राम पंचायत में रामजानकी मार्ग के बगल स्थित प्राचीन दुग्धेश्वरनाथ शिवलिंग कई शताब्दियों के इतिहास का साक्षी है। यह शिवलिंग स्वयंभू है और ये छरदही गांव के बसाव के पहले से ही यहां उपस्थित हैं, जबकि यह गांव लगभग चार सौ वर्ष पुराना है। लोक श्रुति के अनुसार यह शिव. लिंग पहले झाड़ियां के बीच था. विशेष पर्व पर लोग यहां आते थे और शिव का जलाभिषेक करते थे। मुगलकाल में इस मार्ग से गुजरते एक मुगल सैन्य अधिकारी नें जब यहां झाड़ियों में लोगों की भारी भीड़ देखी तो वह शिवलिंग के पास पंहुचा और तलवार से शिवलिंग पर दो प्रहार किया जिससे शिवलिंग के एक तरफ से दूध और दूसरे तरफ से खून की धार बहने लगी,
और सैन्य अधिकारी मंदिर से 500 मीटर आगे स्तिथ पोखरे के पास घोड़े से गिर कर मर गया। जब छरदही गांव बसा तब यहां के लोगों के आजीविका का मुख्य साधन दूध उत्पादन था, लोग बताते हैं कि गांव में दूध दही की अधिकता की वजह से इस गांव का नाम क्षीरदही पड़ा जो कालांतर में छरदही हो गया।
दुग्ध उत्पादक गांव के लोगों नें अपने आराध्य शिवलिंग का नामकरण दुग्धेश्वरनाथ किया। इस प्राचीन शिवलिंग का इतिहास सोल. हवीं शताब्दी के लगभग का है। इस शिवलिंग पर मंदिर का निर्माण लगभग 150 वर्ष पहले विकासखंड क्षेत्र के ही पिछौरा गांव निवासी एक नायक जी द्वारा कराया गया।
समय के साथ मंदिर धीरे-धीरे ध्वस्त होने के कगार पर पहुंच गया जिसकी मरम्मत का कार्य ब्लाक प्रमुख अनिल दूबे के नेतृत्व में लोगों के सहयोग से हुआ। वर्तमान समय में गांव के नौजवानो द्वारा कमेटी बना कर मंदिर की देखरेख की जा रही है। इस स्थान पर रुद्राभिषेक कराने से लोगों की पुत्रप्राप्ति की मनोकामना पूरी होती है। सभी शिव पर्व पर यहां अगल बगल से सभी गाँवो के लोगों के अलावा यहां दूर-दूर से लोग आते हैं और जलाभिषेक करते है। महाशिवरात्रि के दिन यहां लगभग 5 से 7 हजार लोग जलाभिषेक करते हैं। काफी वर्षों तक यह प्राचीन शिव मंदिर उपेक्षा का शिकार रहा, लेकिन अब कुछ नौजवानों ने कमेटी बनाकर मंदिर की देखभाल का कार्य प्रारंभकिया है।