संरचना : प्रकार्यवाद एवं संरचनावाद

अरुण कुमार
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 संरचना : प्रकार्यवाद एवं संरचनावाद

(Structure: Functionalism and Structuralism)

समाजशास्त्र में बढ़ती जटिलता ने संरचना व उसके प्रकार्य के विश्लेषण को जन्म दिया, जिसमें वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित संरचना व प्रकार्य के विश्लेषण को प्रमुखता प्रदान की गयी। इन विश्लेषकों में मैलिनोवस्की रेडक्लिफ ब्राउन, रॉबर्ट के मर्टन, टालकॉट पारसन्स व लेवी स्ट्रॉस जैसे प्रमुख समाजशास्त्रियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

संरचना : प्रकार्यवाद एवं संरचनावाद

संरचना से तात्पर्य (Meaning of Structure)

सामान्य भाषा में सरचना शब्द का प्रयोग बनावटमा ढांचे में लिया जाता है। यह एक प्रकार का प्रतिमान (मॉडल) होता है जब किसी भवन को बनाया जाता है, तो उस भवन काडाँचाया स्वरूप एक प्रकार की संरचना कही जाती है। 16वीं शताब्दी में इस अवधारणा का प्रयोग किसी एक सम्पूर्ण व्यवस्था के अगों के पारस्परिक सम्बन्धों के साथ किया संरचना का यह प्रयोग शरीर रचना विज्ञान में अधिक हुआ। इसके बाद इसका प्रयोग राजनीतिक दार्शनिकों ने किया सरचनावाद का उदय फ्रांस से माना जाता है। समाज के बाहरी ढाँचे को सामान्यतः सामाजिक सरचना कहा जाता है। सामाजिक संरचना में सामाजिक संस्था, सामाजिक प्रतिमान व्यक्तियों द्वारा ग्रहण किए पद तथा उनको भूमिकाओं को शामिल किया जाता है। इस संरचना में संरचना के साथ उसके कार्यवाद का अध्ययन किया जाता है।

प्रकार्यवाद (Functionalism)

समाजशास्त्र में कार्य को अवधारणा का प्रयोग उन्नीसवा शताब्दी में ऑगस्ट कॉस्टे तथा हरबर्ट स्पेन्सर द्वारा किया गया, जिने मानव समाज तथा विकीय सात में अधिक माश्यता देखी, लेकिन इसे अवस्थित एवं वैज्ञानिक अवधारणा के रूप में प्रयोग किए जाने का श्रेय दुखीम को जाता है। इनके इस प्रकार्यवाद को व्यवस्थित रूप में अन्तर्राष्ट्रीय समाजशास्त्रीय जगत में फैलाने का श्रेय दो प्रसिद्ध ब्रिटिश मानवशास्त्रियों मैलिनोवस्की एवं रेडक्लिफ ब्राउन को जाता है।

 दुखीम ने प्रकार्यवाद के सामाजिक, सांस्कृतिक तत्व का अध्ययन सम्पूर्ण समाज एवं संस्कृति के सन्दर्भ में किया। उनके अनुसार प्रत्येक सामाजिक सांस्कृतिक तत्वों के सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था के लिए कुछ कार्य होते हैं। साथ ही ये तत्व प्रकार्यात्मक आवश्यकता के आधार पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और अपने जीवन के लिए सम्पूर्ण व्यवस्था पर आश्रित होते हैं। 

अतः जो एक व्यवस्था से अनुकूलन व सामंजस्य बनाए रखते हैं, वे प्रकार्य कहलाते हैं। यह समाज के अनुकूलन में सहायक प्रत्यक्ष परिणाम होता है। सर्वप्रथम इस शब्द का प्रयोग 1893 ई. में किया गया। प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण समाज के अन्तर्सम्बन्धित भागों को एक ऐसी स्वचालित व्यवस्था के रूप में देखने का सरल दृष्टिकोण है, जिसके अनुसार सभी सामाजिक सम्बन्धों में एक विशिष्ट संरचना तथा एक वस्तुनिष्ठ नियमितता होती है। यह एक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य है जो किसी सामाजिक तत्त्व, सांस्कृतिक प्रतिमान या व्याख्या को दूसरे सामाजिक-सांस्कृतिक तत्त्वों तथा सम्पूर्ण व्यवस्था के लिए उसके परिणामों के सन्दर्भ में खोजता है। इस  प्रकार्य का समाजशास्त्रीय अर्थ 'परिणाम होता है।

 वर्तमान में समाज में संरचनात्मक प्रकार्यवाद देखने को मिलता है। अतः यह परिप्रेक्ष्य इस बात पर बल देता है कि किसी भी सामाजिक घटना को पूरी तरह अलग-अलग न मानकर उसे व्यवस्था के एक अंग के रूप में देखा जाना चाहिए। साथ ही, व्यवस्था के निर्माणक भाग को बनाए रखने में जो अपना योगदान करते हैं,उन्हे भी अध्यन किया जाता हैं। 

इस अध्याय में 

  • प्रकार्यवाद
  •  संरचनावाद
  • ब्रोनिस्लो मैलिनोवस्की का
  • प्रकार्यवाद
  • अल्फ्रेड रेडक्लिफ ब्राउन का प्रकार्यवाद
  • पारसन्स का प्रकार्यवाद
  • मर्टन का प्रकार्यवाद
  • लेवी स्ट्रॉस का संरचनावाद




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