उन्मुक्त उड़ान मंच पर बही आयोजनों की बहार

Lavkush Singh
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उन्मुक्त उड़ान मंच आपका अपना साहित्यिक मंच, इस सप्ताह नए अनूठे कार्यक्रमों की सौगात लेकर आया| विगत में हुए नवरात्रि के पावन दिनों में हुए कार्यक्रमों की समीक्षात्मक अभिव्यक्ति गीतात्मक वीडियो के द्वारा पर 12रचनाकारों ने प्रस्तुति रेखा पुरोहित तरंगिणी के विषय निरूपण में दी। वीना टंडन पुष्करा के प्रवर्तन में शरद पूर्णिमा दिवस पर छंदमुक्त कविता का सृजन 49 रचनाकारों ने किया। वायु सेना दिवस पर गगन के रक्षक विषय पर संतोषी किमोठी वशिष्ठ सहजा के प्रवर्तन में 36रचनाकारों ने अपने भाव और शब्दों से वायु सेना के अदम्य शौर्य, ऑपरेशन सिंदूर को समाहित कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए । 59 सृजनकारों द्वारा करवा चौथ के चांद विषय पर अपने जीवन साथी और पर्व की सापेक्षता पर सृजन किया। विषय निरूपण किरण भाटिया नलिनी ने किया। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर नन्ही बिटिया विषय का प्रवर्तन अनु तोमर अग्रजा ने किया। 45रचनाकारों ने स्वैच्छिक विधा में गीत, छंद, छंदमुक्त कविता में सृजन करा। साप्ताहिक विषय आदिकवि वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण के किसी दृश्य को अपने शब्दों में वर्णन कथा आलेख विधा में करना था। 12 लेखक स्वर्ण लता सोन कोकिला, अनिल, दिनेश शर्मा, निशा कौल शर्मा, दिव्या भट्ट स्वयं, सुरेश सरदाना, नंदा बमराडा, रंजना बिनानी, प्रवीणा सिंह राणा, शिखा खुराना, संजीव कुमार भटनागर सजग, दवीना अमर ठकराल देविका, और सुनीता तिवारी की उत्तम, मनोरम रचनाएँ पढ़ने को मिलीं|

सुमन किमोठी वसुधा के विषय प्रवर्तन में रचनाकारों की सहभागिता रही| मंच की अध्यक्षा और संस्थापिका के द्वारा सहभागिता, समीक्षा और प्रोत्साहन ने सभी सृजनकारों का उत्साहवर्धन किया।

 उन्मुक्त उड़ान मंच द्वारा आयोजित साप्ताहिक कार्यक्रम का संयोजन एवं सौंदर्यपूर्ण, सृजनात्मक डिज़ाइन नीरजा शर्मा ‘अवनि’ और नीतू रवि गर्ग ‘कमलिनी’ ने किया। कार्यक्रमों की निरंतर समीक्षा अशोक दोशी ‘दिवाकर’ तथा सुरेश चंद्र जोशी ‘सहयोगी’ द्वारा की गई, जबकि कृष्णकांत मिश्र ‘कमल’ और संजीव कुमार भटनागर ‘सजग’ ने रचनात्मक समालोचना और चयन का दायित्व निभाकर विज्ञप्ति को विशिष्ट स्वरूप प्रदान किया। इस अवसर पर मंच की संस्थापिका एवं अध्यक्षा डॉ. दवीना अमर ठकराल ‘देविका’ ने कहा –

“उन्मुक्त उड़ान मंच के ये आयोजन उसकी सार्थकता और लेखकों के समर्पित प्रयासों का उज्ज्वल प्रतीक हैं। साहित्य और साधना के संगम से आत्मिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने के साथ-साथ समाज में पर्व , उत्सव की जागरूकता और सांस्कृतिक मूल्यों की मजबूती को भी स्थापित करता है।”

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